Saturday, October 20, 2007

तुम्हारे बोल

तिलमिला जाता हूँ मैं
हद कर देती हो
क्या शर्तों पर जीवन जीने लगूँ
या मान लूँ कि
मेरा कोई अस्तित्व नहीं,
बिन तुम्हारी सहमति के

क्या चाहती हो तुम
मैं कहता हूँ वो तुम मानती नहीं
तुम कहती हो कि तुम जानती नहीं

कोई तो रास्ता होगा.....

सोचो न!!!
बताओ न!!!

मैं जीना चाहता हूँ-
अपनी शर्तों पर.

Friday, October 5, 2007

जिन्दगी और मौत

मौत!!

आज कुछ इतने करीब से गुजरी

जिन्दगी!!

एक पल को ठिठकी
सहमी, भरमाई,
फिर हाथ थाम कर मेरा
ले चली अपने साथ.

एक नया साहस, एक नया अंदाज.

अब तो सब कुछ देखा
सब कुछ जाना पहचाना सा है.

अब मुझे मौत से डर नहीं लगता!!