तिलमिला जाता हूँ मैं
हद कर देती हो
क्या शर्तों पर जीवन जीने लगूँ
या मान लूँ कि
मेरा कोई अस्तित्व नहीं,
बिन तुम्हारी सहमति के
क्या चाहती हो तुम
मैं कहता हूँ वो तुम मानती नहीं
तुम कहती हो कि तुम जानती नहीं
कोई तो रास्ता होगा.....
सोचो न!!!
बताओ न!!!
मैं जीना चाहता हूँ-
अपनी शर्तों पर.
Saturday, October 20, 2007
Friday, October 5, 2007
जिन्दगी और मौत
मौत!!
आज कुछ इतने करीब से गुजरी
जिन्दगी!!
एक पल को ठिठकी
सहमी, भरमाई,
फिर हाथ थाम कर मेरा
ले चली अपने साथ.
एक नया साहस, एक नया अंदाज.
अब तो सब कुछ देखा
सब कुछ जाना पहचाना सा है.
अब मुझे मौत से डर नहीं लगता!!
आज कुछ इतने करीब से गुजरी
जिन्दगी!!
एक पल को ठिठकी
सहमी, भरमाई,
फिर हाथ थाम कर मेरा
ले चली अपने साथ.
एक नया साहस, एक नया अंदाज.
अब तो सब कुछ देखा
सब कुछ जाना पहचाना सा है.
अब मुझे मौत से डर नहीं लगता!!
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