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एक बार
बस
एक बार
कुछ ढीला
छोड़ दिया था
खुद को..
गिरी......
और फिर
पतन
की
कोई सीमा न रही!!!
नहीं चाहिये मुझे
तुम्हारी बराबरी का दर्जा
नहीं चाहिये मुझे
कोई सम्मान
नहीं चाहिये मुझे
रुपया पैसा...
मगर
मुझे इन सब के बदले
बस
और केवल
बस
जीने का अधिकार दे दो!!
मुझे मेरा परिवार दे दो!!