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Friday, August 27, 2010
नाव
कागज़ के टुकड़े को
करीने से
आकार देकर
बहा दी थी
नाव
बारिश के पानी में..
कुछ दूर चली
लड़खड़ाई..
डूबी
और
खो गई
लुग्दी बन कर....
.
.
.
आज भी
बारिश में
मुझे
याद आती है वो
नाव!!
Tuesday, August 24, 2010
गुमनाम...
चन्द शब्द मिले
बिखरे हुए
कहते हैं
कोई कविता बुन रहा था
बेतरतीब
सो बिखर गये..
मैने चुन लिया
और
एक तागे में गूथा उन्हें..
लोग कहते हैं..
कविता रच दी है मैने!
वो कवि कौन था
जो बिखेर गया
इन शब्दों को...
गुमनाम!!
Wednesday, August 18, 2010
क्रूर-क्रूर-क्रूर!!!
कार
का
भर्राता
हार्न
कटे
सर
की
गुड़िया
लाठी
टेक
चलता
लाचार
बाप
टकटकी
लगाये
माँ
की
आँख
भाई
की
सूनी
कलाई
माथे
का
सिन्दुर
पौंछती
शहीद
की
बेवा
अशिक्षित
बाल
मजदूर
दादी
की
थमती
सांस
दवा
की
दुकान
लंगर
में
बंटता
प्रसाद
दारु
पिया
बेसुध
पति
माँ
की
नीलामी
देश
की
संसद
भट्टी
में
पिधलता
लाल
लोहा
..
मैं
मजबूर
खुद
से
दूर
चकनाचूर
!!!
मेरी
सोच
क्रूर
-
क्रूर
-
क्रूर
!!!
Saturday, August 14, 2010
सन ४७ से
धुनी कपास की बनी
पोनी को चरखे पर कात
बनाई थी खादी की
एक सफेद चादर
कुछ चूहे मिलकर
कुतरते रहे रात दिन
उसे सन ४७ से
और आज
छोटी छोटी कतरनों का ढेर
लगने लगा है जैसे
कच्ची कपास
उसे धुनना होगा
एक नई चादर
फिर से बुनना होगा.
*
-स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें-
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साधवी
मैं की तलाश में अब तक भटक रही हूँ.
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