Monday, September 6, 2010

कुछ भी नया नहीं





एक बोतल शराब

एक कंठ

जिससे नीचे उतरता

मीठा गरल

सामने मैं

एक मांस का टुकड़ा

भक्षने को आतुर आँखें

खुद को

आँख बंद कर

छुपाती

मैं!!

-कुछ भी नया नहीं कह पाई!

Friday, September 3, 2010

नींव




आँख

चौंधिया जाती है

जब

इन इमारतों की

जगमागहट से

तब

ऐसे में अक्सर

झांक लिया करती हूँ

इनकी नींव में..

कितना अँधेरा है वहाँ!!