Monday, September 6, 2010

कुछ भी नया नहीं





एक बोतल शराब

एक कंठ

जिससे नीचे उतरता

मीठा गरल

सामने मैं

एक मांस का टुकड़ा

भक्षने को आतुर आँखें

खुद को

आँख बंद कर

छुपाती

मैं!!

-कुछ भी नया नहीं कह पाई!

Friday, September 3, 2010

नींव




आँख

चौंधिया जाती है

जब

इन इमारतों की

जगमागहट से

तब

ऐसे में अक्सर

झांक लिया करती हूँ

इनकी नींव में..

कितना अँधेरा है वहाँ!!

Friday, August 27, 2010

नाव




कागज़ के टुकड़े को
करीने से
आकार देकर
बहा दी थी
नाव
बारिश के पानी में..
कुछ दूर चली
लड़खड़ाई..
डूबी
और
खो गई
लुग्दी बन कर....
.
.
.
आज भी
बारिश में
मुझे
याद आती है वो
नाव!!

Tuesday, August 24, 2010

गुमनाम...




चन्द शब्द मिले
बिखरे हुए

कहते हैं
कोई कविता बुन रहा था

बेतरतीब

सो बिखर गये..

मैने चुन लिया

और

एक तागे में गूथा उन्हें..

लोग कहते हैं..

कविता रच दी है मैने!

वो कवि कौन था
जो बिखेर गया
इन शब्दों को...

गुमनाम!!

Wednesday, August 18, 2010

क्रूर-क्रूर-क्रूर!!!





कार का भर्राता हार्न

कटे सर की गुड़िया

लाठी टेक चलता लाचार बाप

टकटकी लगाये माँ की आँख

भाई की सूनी कलाई

माथे का सिन्दुर पौंछती शहीद की बेवा

अशिक्षित बाल मजदूर

दादी की थमती सांस

दवा की दुकान

लंगर में बंटता प्रसाद

दारु पिया बेसुध पति

माँ की नीलामी

देश की संसद

भट्टी में पिधलता लाल लोहा..


मैं मजबूर

खुद से दूर

चकनाचूर!!!

मेरी सोच

क्रूर-क्रूर-क्रूर!!!

Saturday, August 14, 2010

सन ४७ से




धुनी कपास की बनी

पोनी को चरखे पर कात

बनाई थी खादी की

एक सफेद चादर

कुछ चूहे मिलकर

कुतरते रहे रात दिन

उसे सन ४७ से

और आज

छोटी छोटी कतरनों का ढेर

लगने लगा है जैसे

कच्ची कपास

उसे धुनना होगा

एक नई चादर

फिर से बुनना होगा.


*

-स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें-

Sunday, July 18, 2010

पतन


एक बार
बस
एक बार

कुछ ढीला
छोड़ दिया था
खुद को..

गिरी......

और फिर

पतन
की
कोई सीमा न रही!!!