अभिव्यक्त करुँ
या मौन धरुँ
कब कोई
यहाँ पर सुनता है
मेरे सब
सुख दुख मेरे हैं
कैसे माने
हम तेरे हैं
पर पीड़ा से
विचलित होकर
कब कोई
यहाँ सर धुनता है
कब कौन
किसी का होता है
क्यूँ जहर
यहाँ पर बोता है.
अपनी दुनिया में
खुश हो लेंगे
बस ख्वाब
यहाँ वो बुनता है
Tuesday, June 3, 2008
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