Tuesday, June 3, 2008

अभिव्यक्त करुँ या मौन धरुँ

अभिव्यक्त करुँ
या मौन धरुँ
कब कोई
यहाँ पर सुनता है

मेरे सब
सुख दुख मेरे हैं
कैसे माने
हम तेरे हैं

पर पीड़ा से
विचलित होकर
कब कोई
यहाँ सर धुनता है

कब कौन
किसी का होता है
क्यूँ जहर
यहाँ पर बोता है.

अपनी दुनिया में
खुश हो लेंगे
बस ख्वाब
यहाँ वो बुनता है