Monday, August 4, 2008

मैं जिनके लिए लिखती हूँ, वो मुझ पर अपना थोड़ा तो वक्त बर्बाद करें

यह क्यूँ लिख रही हूँ, मुझे खुद पता नहीं. शायद इसलिये कि मुझे कोई पढ़ नहीं रहा और न ही मेरा पास ऐसे दो लिंक हैं जो मैं दे सकूँ सनसनी मचाने के लिए.

शायद परसाई जी ने एक बार कहा था कि मैं आम जन के लिए लिखता हूँ. मैं रिक्शेवालों के लिए लिखती हूँ. फिर तुम तो लगभग रिक्शेवाले हो..मगर मैं न ही हरि शंकर परसाई हूँ और न ही बन सकती हूँ और न ही बनना चाहती हूँ. लेकिन साध्वी रितु नामक साधारण साध्वी होते हुए भी मुझे पूरा अधिकार है कि मैं सनिवेदन कहूँ कि मैं तुम्हारे लिए लिखती हूँ और स्वांतः सुखाय तो कतई नहीं, फिर मुझे क्यूँ नहीं पढ़ा जाता. मैं तो बाल मुकुन्द, तुम्हें ध्यान में रख कर लिखती हूँ फिर भी तुम मुझे नहीं पढ़ते.

तुम्हारे लिए तो कविता गरमागरम पराठे पर सफेद ताजा मख्खन डाल कर जायके से खाने के और साथ में आरेंज ज्यूस सटकाने के सिवाय कुछ भी नहीं है और वो ही मैं परोसने की कोशिश करती हूँ, फिर भी नहीं पढ़ते. मैं तो खुद ही तुम्हें बुलाने नहीं आती. मैं तो ज्ञानदत्त, शिवकुमार, समीर लाल, अनुराग और अनूप शुक्ला को भी नहीं बुलाती. जबकि उन सबको जा जा कर पढ़ती जरुर हूँ बिना उनके बुलाये. वो मुझे पसंद हैं तुम्हारे जैसे ही तो. बार बार जाती हूँ.

मुझे तो साहित्य क्या होता है, यही नहीं पता और न ही २२ साल की कच्ची उम्र में मुझे साहित्यकार होने का झूठा दम्भ है, कि मैं कह सकूँ कि तुम क्या लिख रहे हो. यह दम्भ तो प्रेम चन्द से लेकर बड़े बड़े साहित्यकारों में नहीं आया मगर आजकल आसपास दिख रहा है. उससे क्या करना है. मुझे तो उन तीस बुद्धिजीवी प्रशंसक टिप्पणीकारों से भी कुछ नहीं कहना क्योंकि मैं तो खुद ऐसे ग्रुप मे कभी नहीं रही.शुरुवात मेरी उस गैंग से नहीं हुई जहाँ से इस तरह के नई साहित्यकार क्लेमेंट की हुई..सारे नव कवि मिल कर एक दूसरे को सराहें. तो मैं क्या करुँ मैं तो तुम्हारे भरोसे ही हूँ, मेरे बालमुकुन्द और लालमुकुन्द.

न मेरे पति हैं, न बच्चे. अगर तुम वाह वाही करोगे तो मैं ही खुश होंगी.और किसे दिखाऊँगी. मेरा लिखने का उद्देश्य सेवा करना है न कि साहित्य रचना. मेरे बस में वो नहीं, तुमने शोले देखी है.फिल्म फेयर एवार्ड जीती थी और तुम वाह वाह कर रहे थे. तुम शिव के व्यंग्य समझ सकते हो, तुम्हें समीर लाल का लिखा समझ आ जाता है. तुम सीमा दानी के चित्रकारी समझ जाते हो..राकेश खण्डॆलवाल की गहरी गीत संरचना समझ जाते हो, ज्ञान दत्त का ज्ञान जानते हो और फुरसतिया की फुरसत का लुत्फ उठाते हो. लेकिन यह सब समझ जाने से क्या होता है जब तुम मेरे लिखे को समझ कर न समझ बने रहते हो. कोई टिप्पणी नहीं करते. पढ़ा करो न!

मैं जो भी हूँ और जो भी लिखती हूँ, मैं चहाती हूँ सब उसे पढ़ें और टिप्पणी करें. उसके लिए इससे मुफीद जगह और कौन सी है वरना तो डायरी लिख लेती. मगर वो साहित्यकार जो सबको पढ़वाना नहीं चाहते और डायरी की जगह गलत जगह ब्लाग पर लिखते हैं, उन्हें तुम पढ़ते हो और पैरोड़ी करते हो..क्यूँ आखिर क्यूँ. जबाब दो.

अगर तुम्हें मेरा लिखा पसंद आये जो कि तुम्हें आता है तो कुछ समय तो खर्चो. एक टिप्पणी दो. उसी का तो इन्तजार है भले ही मैं कुछ बोलूं या कोई छटाक भर कर आत्मदम्भी चार किताब पढ़ा छुटकू साहित्यकार का झूठा लबादा ओढ़े व्यक्ति कहे. भला बुरा जैसा भी लगा हो झेल लेना मगर मैं अपने को झूठमूठ का स्वयंभू साहित्यकार घोषित नहीं कर सकती, मेरे बालमुकुन्द और लालमुकुन्द.

आओ न और टिपियायो न!

31 comments:

Smart Indian said...

Excellent sense of humor. Congratulations!

बालकिशन said...

आभार.
क्या कहें साध्वी जी आपकी लिखने की शैली तो बहुत ही गढ़ी हुई और रुचिकर है.
बाकी इस पोस्ट के विषय में क्या कहूँ जो चुक अपन से होनी थी सो तो हो ही गई अब जितनी जल्दी ये ठीक हो जाए या हम सब भुला दे वो ही अच्छा.
एक बार फ़िर मेरे लिए लिखने के लिए आपका आभार.
कोशिश करता रहूँगा की आपको पढता रहूँ.

Anil Pusadkar said...

umeed hai bhatke hue ko sahi gyan mil gaya hoga aur jo bhatak sakte hai jhooti prashansa se we bhi sawdhaan ho gaye honge.mere ek sampadak ne mujhse kaha tha jisse jhagda ho use galiyan mat do uski prashansa karna shuru karo, apne aap wo dub jayega,prashansa se bada koi nasha nahi hai.baharhal aapko badhai is aankh kholu lekh ke liye ishwar hum jaise naye nawadiye bloggaron ko jhooti prashansa se bachayega aur aapka lekh hume sawdhaan karta rahega,dhanyawaad

Anonymous said...

अरे, आप तो ग्वाल बालों की छेड़खानी से नाराज़ हो गयीं? माहराज श्री श्री कृष्ण के बाल रूप नामधारी ग्वाल बाले गोकुल में उपद्रव नहीं मचायेंगे तो क्या करेंगे?

अभी तो यह चिरौरी कर के आपको बहला रहें हैं, लेकिन मौका लगने पर बाल गोपाल की तरह मटकी फोड़ कर दही चुराने से भी पीछे न हटेंगे

धन्य हो हे बाल-गोपालों की मस्त, अल्हड़ टोली, आपकी टोली का तो एक-एक बालक बड़े-बड़े गुरुओं का कानकट्टु है

कुश said...

जब ये लेख पढ़ना शुरू किया तो मुझे लगा की ये नितांत व्यक्तिगत लेख होगा परंतु आपने इसको सही संभाला और कभी भी मूल विषय से भटकने नही दिया.. व्यंग्य ही सही रूप है अपने रोष को प्रकट करने का.. भाषा का सही उपयोग किया है आपने.. बहुत बहुत बधाई

Anonymous said...

रितु जी, आप तो साध्वी है. हम तो सोचते थे कि आप टिपियाने की लालसा से परे होंगीं, बस इसीलिये नहीं आये. देखिये ना, ब्लाग ब्लाग व्यापी समीर भैया भी यहां कभी कभार ही आ पाते हैं.

वैसे आपने बहुत अच्छा लिखा है. गद्य पर आपकी पकड़ पद्य से अधिक मज़बूत है. अब हम तो आते रहेंगे यहां और टिपियाते रहेंगे भी.

क्योंकि आप हमारे लिये ही तो लिखतीं हैं.

ravishndtv said...

साध्वी जी
आप लिखती रहें। अपने लिए भी और ज़माने के लिए भी। हमने आपके लिखे पर थोड़ा सा वक्त बर्बाद किया है और अब आप अपने लिखे के लिए पूरा वक्त बर्बाद कर सकती हैं। स्वागत है।

Neeraj Rohilla said...

हम्म,
आज से पहले शायद आपके ब्लाग पर कभी नहीं आये । इसीलिये अब पुराने पोस्ट पढेंगे, टिप्पणी का क्या है जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला :-)

आभार,

Shiv said...

शोले तो मुझे भी बहुत पसंद है. बड़े मियां छोटे मियां भी. फिल्मफेयर अवार्ड्स टीवी पर देखते हुए मैंने भी ताली बजाई थी. एक ही पछतावा रह गया. अपनी प्रोफाइल पर दर्शनशास्त्र पर थोड़ा हाथ फेर लिया होता तो लोगों के मन में भ्रम पैदा कर सकता था कि मैं सत्यजीत रे की बनाई फिल्में भी न सिर्फ़ देखता हूँ बल्कि समझ भी लेता हूँ......:-)

Ghost Buster said...

हे राम! एक और पैरोडी. मगर बहुत शानदार और लज्जतदार. ठीक उस चाय की तरह जो बालकिशन जी हमें पिलाने का वादा करके मुकर गए.

आप की भी तारीफ़ कर रहे हैं सो इस आशा से की शायद आप ही कभी चाय पर बुला लें. साथ में भिगोकर खाने के लिए डबलरोटी हम लेते आयेंगे.

संजय शर्मा said...

साक्षात् परसाई जी का दर्शन हमारे लिए तो गौरव की बात है . आपकी नज़रें आस पास का बढ़िया ख़बर लेती रहे .
शुभकामना .

Nitish Raj said...

good post...keep writing...

नीरज गोस्वामी said...

साध्वीजी
बहुत सोच समझ कर लिखी गई...पठनीय पोस्ट...सबके लिए.
नीरज

अभय तिवारी said...

इसरार का मान तो रखना पड़ेगा न.. अच्छा लिखा आपने!

अजित वडनेरकर said...

बहुत सुंदर साध्वी जी। दम्भ पर काफी अच्छा प्रवचन रहा। आगे भी बहती रहे यह निर्मल धार बालमुकुंद जी के लिए। हम उन्हें बालमुकुंद के लिए चिट्ठे कहा करेंगे :)

राज भाटिय़ा said...

साध्वीजी
क्या बात हे एक अंदाज यह भी, बहुत पंसद आया, धन्यवाद

ghughutibasuti said...

क्षमा कीजिएगा, मुझे कुछ समझ नहीं आया। शायद प्रसंग नहीं पता या मेरी बुद्धि से ऊपर की बातें हैं।
घुघूती बासूती

रवि रतलामी said...

आपके प्रवचन निहायत कड़वे हैं. पर सत्य भी तो कड़वा होता है.

भटके भक्तों को सत्य से ऐसे ही साक्षात्कार नियमित करवाते रहें ... प्रार्थना है... :)

sushant jha said...

साध्वी जी हिला के रख दिया आपने..,.पहले ऑवर में ही सिक्सर...कमाल है भई..आप इतने दिन तक कहां थी...इंतजार रहेगा...आगे भी

Udan Tashtari said...

मनुहार है और जिक्र भी, तो चले आये. सही है. लिखती रहें. शुभकामनाऐं.

श्रद्धा जैन said...

Pahli baar padha
aapka sheershak hi aisa tha ki aane se ruka na gaya
aur aakar aana saarthak laga

ab aati rahun yahi koshish rahegi
aapse vicharon ka aadan praadaan achha lagega

Arun Arora said...

बिलकुल जी आपकी आज्ञा शिरोधार्य , हमने पूरा पूरा साढे चार घडी और पौने बारह पल यहा बरबाद अरे नही नही आबाद किया आपके ब्लोग को ,और आपको भरोसा दिलाते है कि आप अगर ऐसे ही साहित्य से दूरी बनाये रही तो आते ही रहेगे. वो क्या है कि साहित्यकारो की और हमारी बनती नही है ना ही हम आज के स्वनाम धन्य मूर्ध दुसरे की भावना भडकाने वाले इन दौ कोडी के साहित्यकारो को झेल पाते है.

रंजन (Ranjan) said...

पढ़ते रहो, टिपयाते रहो!

शोभा said...

बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

मुनीश ( munish ) said...

carry on sadhvi!! i luv saffron!

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...
This comment has been removed by a blog administrator.
abhimanyu said...

बस यु ही भटकते भटकते हम यहाँ पहुँच गए और सच आपका टिपियाने का आग्रह ठुकरा नही सकते तो बस हम भी दिए टिपिया ,वैसे आप परसाई जी का अनुगमन करती हुई लग रही हैं ,बेहतर होगा कुछ निजी करें |

जितेन्द़ भगत said...

सोने से पहले मैने सोचा, कोई एक अच्‍छा सा पोस्‍ट पढ़कर सोऊं। आपकी पोस्‍ट नजर आई,सोचा क्‍लि‍क करने के बाद कहीं वक्‍त सही में बरबाद न हो जाए , पर पढ़कर नींद खुल गई। उम्‍मीद है कुछ और लोग भी नींद से जागेंगे।

Sanjeet Tripathi said...

क्या बात है!
हम जो महीनों से ब्लॉग जगत से गायब हैं, आपकी पुकार से चले आए।

Astrologer Sidharth said...

मैं भी ब्‍लॉग लिखता हूं और टिप्‍पणियां भी आती हैं। बहुत कम। जो भी आती है अच्‍छा लगता है, महसूस होता है कि कोई पढ़ तो रहा है मेरा लिखा हुआ। लेकिन सही कहूं मुझे यह पीठ खुजाने वाला काम लगता है। लो साध्‍वीजी मैंने आपकी पीठ खुजा दी अब आप भी आइएगा मेरे ब्‍लॉग पर मेरी पीठ खुजाने के लिए।
:)

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

ऊपर मेरे नाम से किया गया कमेन्ट मैंने नहीं किया है. इसे मेरे प्रोफाइल के लिंक को कॉपी करके किया गया है. मैं इस प्रकार के कमेन्ट नहीं करता हूँ, वैसे भी मैं आजकल बहुत कम कमेन्ट कर पा रहा हूँ. सभी ब्लौगर जन ऐसे किसी कमेन्ट से भ्रमित हो सकते हैं. किसी भी संशय की स्थिति में कृपया बेखटके मेल करके पूछ लें.