चाहे कितनी भी टिप्पणियाँ दिजिये मुझको. चाहे कैसी भी भाषा का प्रयोग किजिये. भले ही मुझे अपने समकक्ष मत आने दिजिये. नारी हूँ दमित कर दिजिये. ढकेल दिजिये पीछे. जो मन में आये सलाह दे डालिये. ’लो कमेंट’ और ले लो वाली मुद्रा में आ जाईये. चाहे तो ऐसा कह लिजिये कि कैसी नारी है, आह्ह तक नहीं कहती. नारी सुलभ आंसू तक नहीं बहाती.
मगर मैं अपनी भाषा की मर्यादा नहीं छोड़ पाऊँगी. किया होगा किसी ने किसी के साथ व्यभिचार. किया होगा किसी ने किसी के साथ बलात्कार. कितने ही आदमियों ने आदमियों की हत्या की है. कितने ही आदमियों ने आदमियों को सताया है. कितनी ही नारियों ने नारियों को सताया है. सास बहू को जला देती है. मारती है. नारी ही नारी पर अत्याचार करती है. कोठे चलाने वाली मौसियाँ भी नारी ही होती हैं. पुरुष ही पुरुष पर अत्याचार करता है. नारी ही नारी पर अत्याचार करती है. नारी ही पुरुष पर अत्याचार करती है. पुरुष ही नारी पर अत्याचार करता है. सब बहुत झमाल है. कौन किस पर अत्याचार करता है. गड़बड़झाला. ऐसा कह देते हैं कि इन्सान ही इन्सान पर अत्याचार करता है. इन्सान ही इन्सान से प्रेम करता है. इन्सान ही इन्सान से घृणा करता है. इन्सान ही इन्सान को बचाता है, इन्सान ही इन्सान को मारता है.
भाषायें अलग अलग हैं, बात वही. गाली को गाली की तरह सीधा बकना तो जरुरी नहीं. इशारे से भी बकी जा सकती है. गाली मैं बक नहीं पाती. अत्याचार मुझ पर भी हुए. खुद लड़ी मगर सिर्फ उससे जो अत्याचारी था. न तो पूरे मर्द समाज को दोषी माना और न ही पूरे नारी समाज को. न इन्सानों की पूरी जमात को. न ही सस्ता नाम कमाने के लिए अत्याचार का विभत्स रुप दिखाने चली आई. शायद कभी लेखनी में दिखाती भी तो करीने से. न कि मंडिड़ी सांड की तरह जो सामने दिखा, उसे मारने दौड़ पड़े.
मुझसे तो यह भी नहीं हो पाता कि कहीं नारी शरीर पर कुछ वैज्ञानिक विश्लेषण कर लिखा जा रहा हो, वहाँ जाकर कहूँ कि एडल्ट का लेबल लगाओ, क्योंकि नर ने लिख दिया और फिर दूसरी जगह उससे भी खराब भाषा में लिखी गंदगी पर कमेंट का इन्तजार करुँ कि आखिर कब सभ्य अपने दड़बों से निकलेंगे, क्योंकि यह नारी ने लिखा. मेरी लिए तो दोनों एक बराबर हैं, बस एक इन्सान. न नर न नारी. मैं किसी पर आक्षेप नहीं लगा रही हूँ. जो देखा वो कहा और बस अपनी मजबूरियाँ गिनवा रही हूँ. मुझमें आत्म विश्वास कितना कम है कि दो जगह दो तरह की बात कर ही नहीं पाती. इसी विश्वास को प्राप्त करने के लिए साधना में लीन हूँ.
जिस दिन यह सिद्धि प्राप्त हो जायेगी. साध्वी का रुप छोड़कर आपकी तरह खुली हवा में जी पाऊँगी. आप भी मेरे लिए प्रार्थना करिये.
तब तक, किससे क्या कहूँ. कुछ कहना ही नहीं है. बस, इतना सा कि मेरी भाषा ऐसी नहीं है, क्या करें.
खैर, कोई कुछ कहे पर अपनी भाषा तो यही है और यही रहेगी। तुम बुझते हो तो बुझो.
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14 comments:
ishwaar aapki har manokaamna puri kare,
साधवी जी निराश न हों भगवान सबके साथ है, आपके भी।
मेरे जवाब में बहुत अच्छा लिखा है। बधाई। ऐसे ही लिखती रहें। बस बात को पहुंचना चाहिए चाहे जैसे पहुंचे।
भीगा के जुतियाने की जबरदस्त तकनिक आपके पास है .बधाई !
आपके लिए प्राथना करता हूँ.....
आपकी पिछली वाली पोस्ट से भी ज़्यादा धरधार और असरदार.. आपने जो कुछ भी लिखा है उसमे कुछ नया नही है.. लोग ये सब जानते है और शायद मन से मानते भी है.. मगर लिखते नही है. या शायद अपने आकाओ से डरते है.. आपका कोई आका नही है. इसीलिए आपने इतना सब लिखा.. और ये काबिल ए तारीफ़ है.. इस पोस्ट के लिए मैं आपको दस में से दस नंबर देता हू
आपके गद्य में भी पद्य की झलक मिलती है। और जहां तक बात बदलने अथवा रिएक्ट करने की है, वह मनुष्य की कमजोरी ही कहलाती है। आप यदि इसकी अपवाद हैं, तो आप निश्चय ही बधाई की पात्र हैं।
बहुत ही अच्छा लेख लिखा हे आप ने,
क्योंकि नर ने लिख दिया और फिर दूसरी जगह उससे भी खराब भाषा में लिखी गंदगी पर कमेंट का इन्तजार करुँ कि आखिर कब सभ्य अपने दड़बों से निकलेंगे, क्योंकि यह नारी ने लिखा. मेरी लिए तो दोनों एक बराबर हैं, बस एक इन्सान. न नर न नारी,
आप का बहुत बहुत धन्यवाद जिन शव्दो की मुझे खोज थी वो सब आप के इस लेख मे मिल गई, लेकिन फ़िर भी हम नही समझना चाहते
आपके लिए हवन चालू करवा दिया है १११ केशविहिन चोटीधारी ब्राह्मण लगातार मंत्रोच्चार कर रहे हैं.
nice
cool reply
वैसे आप बीजेपी की पुरानी साध्वियो से इस बारे मे सलाह ले सकती है वो भी आजकल खाली ही है और हमारे कार्य क्षेत्र मे दखल दे रही है ( बेमतलब पंगा लेन मे लगी है ):)
मुझमें आत्म विश्वास इतना कम है कि दो जगह दो तरह की बात नहीं कर पाती.आपने इस दोगली ब्रिगेड को पहिचान लिया.बधाई.
आपने अन्य हाँजू,फाँसू गेंगो की भी शिनाख्त करली.मुबारक हो.
हे साध्वीजी आप ने अपनी पिछली पोस्ट पर मैं जिनके लिए लिखती हूँ वो मुझ पर अपना थोड़ा वक्त बर्बाद करें कई गुप्त जानकारियां दीं. ये कि आप की 22 साल की कच्ची उम्र है ,आपके पति और बच्चे भी नहीं.एक कमी है कोई दिलकश तस्वीर भी चश्पा कर दो अरे किसी की भी चलेगी.कोई वेरीफाइ नहीं करने वाला.
बस भक्तों की लाइन लगी समझिये देखो न कितने अभी से आपके श्रीचरणों में लोट रहे हैं.
खैर हे पतित पावनी,भाषा और विचारों की मनभावनी हम तो छटे हुये पापी हैं हमारी कच्ची ही नहीं ढलती उम्र है दो बच्चों के बाप नर हैं न तो नेट के ज्ञानियों के लिए हमारे पास उतंगशिखर है जिस पर वे आरोहण कर ब्रह्मानंद की प्राप्ति करें और न ही सागर की गहराई जिसमें वे गोते लगाकर मोती निकालें.अभिशप्त,अछूत हम इन कमज़र्फो के लिये नहीं लिखते.हमारा सीना जब दर्द के मारे फटता है तब ग़ज़ले जन्म लेती हैं और जब क्रोध आत है तो गालियाँ.
आप साध्वी हैं सो कीर्तन कीजिये मेरे तो गिरधर गोपाल दुजो नहीं कोई.
आप क्या समझे-
नालियों में हयात देखी है,
गालियों में बड़ा असर देखा.(दुश्यन्तकुमार)
और रही साध्वी-पन की बात तो उर्दू का एक मश्हूर शेर है-
ढूँढ़ी बहुत शरीफज़ादियों के घर मगर,
तहज़ीब की किताब तवाइफ़ के घर मिली.
आपकी इतनी गूढ़ गंभीर,पवित्र बातों को सुनकर मुझ अछूत पापी का आपके श्रीचरणों में लोटने को जी चाहता है पर डर है कहीं आप पवित्र न हो जायें पर डर इस बात का है कि आप अपवित्र न हों जायें.सो प्लान केंसल.
बोलो जय साध्वी मय्या की.
अहो (दुर्भाग्य ) आपके लेखन पर मेरी नज़र ही नही पडी -कम से कम एक सामान्य शिस्ट नारी से मुलाक़ात हुयी !
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