दृश्य १:
तहसील कार्यालय में रामाधार तिवारी और श्रीपद पटेल लिपिक पद को शोभायमान करते हैं. उनसे मिलने मैं जब भी किसी काम से तहसील कार्यालय गई, दोनों मुझे अधिकतर कार्यालय के बाहर ही, कभी पान की दुकान पर या कभी चाय की चुस्कियाँ लेते मिले. कम ही ऐसा होता कि मुझे उन्हें मिलने कार्यालय के अंदर तक जाना पड़े.
आज भी हमेशा की तरह ही वो दोनों बाहर ही मिल गये. फरक सिर्फ यह था कि चाय-पान की दुकान के बदले आज वो एक तंबू के नीचे तख्त डाले बैठे थे. पता चला कि किसी बात से नाराज दोनों हड़ताल पर हैं.
मैं तहसीलदार से मिली. उसे उनके हड़ताल के विषय में अधिक जानकारी ही नहीं थी और न ही वो इससे विचलित नजर आया. मैने उनसे आश्चर्य से पूछा भी कि आप जरा भी विचलित नहीं दिखते, काम के हर्जाने की चिंता नहीं है आपको?
वे मुस्कराते हुए कहने लगे कि क्या हर्जाना? वो तो वैसे भी कोई काम नहीं करते थे. कभी कर दिया तो मानिये अहसान हो गया. उल्टा उनके हड़ताल पर चले जाने से बाकी लोगों का काम बिना अड़ंगे के चल रहा है.
मैं तो दंग रह गई ऐसी व्यवस्था की हालत को देखकर.
मगर मेरे दंग रह जाने से क्या अंतर पड़ जाने वाला है, सब वैसा ही चलता रहेगा.
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दृष्य २:
सुना है दो चिट्ठाकार टिप्पणी हड़ताल पर हैं.
मैने एक वरिष्ट चिट्ठाकार से पूछा कि कहानी क्या है?
वो हँसते हुए कहने लगे-क्या कहानी? वही दृष्य १ वाली!!
मैं तो फिर दंग रह गई.
मगर मेरे दंग रह जाने से क्या अंतर पड़ जाने वाला है, सब वैसा ही चलता रहेगा.
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कृप्या बुरा न मानें, यह बस मेरे दिल की बात है. किसी का विरोध नहीं.
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10 comments:
टिप्पणियों में भी हड़ताल की खड़ताल बजती है?
देखिये हम तो हड़ताल पर नहीं हैं सो तुरन्त तिपिया रहे हैं।
बस हमारे समीर भाई हड़ताल पर न जायें!
काम करने वाले को तो मौजूद होना ही चाहिये।
.
हड़ताल नहीं है, बहना..
यह विरोध है, उन मठाधीशों से.. जो,
चिट्ठाकारी में आने का स्वागत करते हैं,
फिर जानबूझ कर उपेक्षा करते हैं । अरे आप बताओ तो,
कि हमारी दिशा किधर जा रही है ..
ऎसा नहीं, कि यह आपका ब्लाग न देखते हों..
चाहो तो आप अपने ब्लाग पर किसी भी क ख ग को गरिया दो,
कल यहँ की काँव काँव का नज़ारा देख लो ।
आपकी दिल की बात कोई दिमाग वाला अपने दिल पर क्यों लेगा, भला ?
तो आपने भी नोटिस ले ही लिया और मैंने आपके रहम दिल का भी बाकी डॉ अमर कुमार जी ने बता ही दिया है .
रामाधार तिवारी और पटेल जी का ब्लॉग है कि नहीं? अगर न हो तो अगली बार जब भी मिलें, उनसे ब्लाग बनाने के लिए कहिये. साथ में तहसीलदार जी को भी.
ये मेरे दिल की बात है. तीन टिप्पणी न सही, तो कम से एक तो मिलेगी ही.....:-)
गुस्ताखी माफ भाई-मैं कहाँ हड़ताल पर जा सकता हूँ. :)
और आप शिव भाई की बात पर ध्यान दें-इन लोगों के ब्लॉग बनवायें. आप तो इनसे मिलती ही रहती हैं.
ब्लॉग तो बनवा ही दिया जाना चाहिए.. ओर हा विरोध को हड़ताल ना समझे..
बाकी सब तो बढ़िया है ही
हमारी हडतलिया टिप्पणी दर्ज की जाय :)
कई लोग तो अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते है टिपण्णी ना लिखने का ...
कई बेचारे लिख नही पाते ..उन्होंने आज तक लिखा ही नही......उन्हें सिर्फ़ अपना लिखा इतना भाता है की बस कही नही जाना .....कई लोगो के लिए .कभी दूसरो का ब्लॉग नही खुलता ..कभी कोम्पुटर हंग हो जाता है की खबरदार जो दूसरे की तारीफ की.....इतने सालो से अपने बनाये नियम से बदल रहे हो......कई बेचारे ऐसे टिपिया देते है की पूछो मत ...परसों फराज साहब का इंतकाल हुआ ...एक साहेब ने उनके ऊपर लिखा फ़िर कुछ शेर लिखे.....पहली टिपण्णी आयी.....बेहतरीन .....सही है...
ओर ये वो साहेब है जो ख़ुद कभी ना कभी कविता शेर जो कहो ठेलते रहते है........
बाकी डॉ अमर जी ने कह. ही दिया है
अनुराग जी ने बात को और स्पष्ट कर दिया है .
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