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Wednesday, August 27, 2008
हाय, ये कैसी विडंबना है!
तू मेरा वर्तमान है..
मैं तुझसे
मूँह चुराती हूँ..
तुझे
देखने को भी
मेरा मन नहीं करता!
और
फिर
खोजने लगती हूँ
तुझमें अपना भविष्य.
सजाने लगती हूँ
नये सपने!
हाय, ये कैसी विडंबना है!
2 comments:
Udan Tashtari
said...
बढिया.लिखते रहें.
August 27, 2008 at 11:26 AM
डॉ .अनुराग
said...
आपका ये अंदाज भी है......
August 28, 2008 at 7:16 AM
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साधवी
मैं की तलाश में अब तक भटक रही हूँ.
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चिट्ठाकार की टिप्पणी हड़ताल!
हाय, ये कैसी विडंबना है!
कौन है और क्या तलाशती है?
मेरी भाषा ही ऐसी नहीं है, क्या करे!
मैं जिनके लिए लिखती हूँ, वो मुझ पर अपना थोड़ा तो वक...
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बढिया.लिखते रहें.
आपका ये अंदाज भी है......
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