Wednesday, August 27, 2008

हाय, ये कैसी विडंबना है!

तू मेरा वर्तमान है..
मैं तुझसे
मूँह चुराती हूँ..
तुझे
देखने को भी
मेरा मन नहीं करता!
और
फिर
खोजने लगती हूँ
तुझमें अपना भविष्य.
सजाने लगती हूँ
नये सपने!
हाय, ये कैसी विडंबना है!

2 comments:

Udan Tashtari said...

बढिया.लिखते रहें.

डॉ .अनुराग said...

आपका ये अंदाज भी है......