Tuesday, August 24, 2010

गुमनाम...




चन्द शब्द मिले
बिखरे हुए

कहते हैं
कोई कविता बुन रहा था

बेतरतीब

सो बिखर गये..

मैने चुन लिया

और

एक तागे में गूथा उन्हें..

लोग कहते हैं..

कविता रच दी है मैने!

वो कवि कौन था
जो बिखेर गया
इन शब्दों को...

गुमनाम!!

22 comments:

Anonymous said...

लोग कहते हैं?

कहने दो

संजय @ मो सम कौन... said...

बहुत खूब लिखा है जी आपने, बधाई स्वीकार करें।



वैसे ईश्वर किसी का बुरा भी करते हैं?

अनूप शुक्ल said...

वाह, बहुत खूब! ये तो समीरलाल की कविता लगती है।

Arvind Mishra said...

व्यास ने भी कुछ लिखा नहीं बस संकलित किया !सुन्दर !

Anonymous said...

रचनाएँ तो बिखरी है हमरे आस पास ही ढेरों,ये हम और हमारी नजर है जो इन्हें समेत कर दे देती है एक रूप कविता,कहानी या किसी कृति का.
इसीलिए तो ऐसे लोगों को 'रचनाकार' कहा जाता है मेरी रचनाकार दोस्त!
एक प्यारासा संवेदनशील दिल आप भी रखती हैं.
हा हा हा
ईश्वर की 'लाडली; बेटी हैं आप भी मेरी तरह.इसलिए आपको और आपकी रचना को ......ढेर सारा प्यार...मेरा

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर ....बिखरे शब्द ..एक नयी सोच .

परमजीत सिहँ बाली said...

वाह! बहुत खूब!!

naresh singh said...

बहुत सुन्दर बात कही है |

राकेश खंडेलवाल said...

जो कविताये< लिख देता है वो मैं नहीं और है कोई
मैने तो बस इधर उध्र जो बिखर गये, वे शब्द चुने हैं.

और ईश्वर क्यों भला करे ? आज के युग में व्यक्तिगत लेन देन में ईश्वर को क्यों बीच में लाती हैं आप ?

आशीष "अंशुमाली" said...

प्रश्‍न यह नहीं कि कवि कौन था.. प्रश्‍न यह है कि तागा कैसा था। सुन्‍दर।

अजित वडनेरकर said...

सुंदर..

रंजना said...

वाह ...वाह...वाह...
बहुत बहुत सुन्दर....

सचमुच शब्दों को बड़े कलात्मकता से धागे में पिरोया है आपने...

ताऊ रामपुरिया said...

वाह बहुत सुंदर शब्द विन्यास है, शुभकामनाएं.

रामराम

दिलीप कवठेकर said...

बिखरे हुए शब्दों के क्या बिसात, जब तक उन्हे कोई एक माला में पिरो नही दे.

यहां सिर्फ़ खुदा ही एकमात्र कवि है, हम सभी माला बनाने वाले.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

sunder kavita ke liye aabhaar

Udan Tashtari said...

अनूप जी का शिष्य प्रेम ऐसा है कि हर उत्कृष्ट रचना उन्हें लगता है कि उनके शिष्य समीर लाल की ही लिखी है. शायद इसीलिए इस बेहतरीन रचना के लिए ऐसा कह गये.

मैं उनके इस स्नेह का अति आभारी हूँ.

तुम तो बस लिखती चलो.

Udan Tashtari said...

अनूप जी का शिष्य प्रेम ऐसा है कि हर उत्कृष्ट रचना उन्हें लगता है कि उनके शिष्य समीर लाल की ही लिखी है. शायद इसीलिए इस बेहतरीन रचना के लिए ऐसा कह गये.

मैं उनके इस स्नेह का अति आभारी हूँ.

तुम तो बस लिखती चलो.

अनूप शुक्ल said...

@साध्वीजी, इसमें बिखरे मोती का नाम आया इसलिये ये ऊपर वाला कमेंट मैंने किया। बिखरे मोती माने समीरलाल। और कोई मंतव्य नहीं था।

सुन्दर लिखा है। लिखती रहें। अगर यह अच्छा नहीं लगा तो अफ़सोस जाहिर करता हूं।

@समीरलालजी, बड़े स्मार्ट बनते हो जी। हर अच्छी कविता को अपना बताने लगे। :)

vijay kumar sappatti said...

ab koi kya kahe.. shabdo ko aane itne acche se piroya hai ki kuch kahne ko nahi bachta hai ..

BADHAI

VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

मृत्युंजय त्रिपाठी said...

आपने तो गुथ दिया न, बहुत अच्‍छा किया। बहुतों को ऐसे बिखरे शब्‍द मिलते हैं, पर सबमें यह कला कहां।

Satish Saxena said...

यह तो प्रभावशाली लगी ....शुभकामनायें

स्वप्न मञ्जूषा said...

बहुत सुन्दर ....