आप बीती या जग सुनी? आप बीती? तो क्यों नही कह पाई ? जग बीती ? तो भी कहूंगी क्यों नही कह पाई?एक सन्यासिनी को किस का भय?कैसा भय? स्वयम को जीतना होगा,इसके लिए मांस का टुकड़ा समझे कोई उसे अहसास दिला दो कि सन्यासिनी हो किन्तु स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद की परम्परा और विचारधारा वाली. मांस का टुकड़ा नही आग हो निगलने की छोड़ो हाथ नही लगा पायेगा.अपने अपने कुरुक्षेत्र हैं यहाँ और अपने युद्ध. स्वयं लड़ने होंगे कोई कृष्ण भी नही होगा साथ इस बार.अपना युद्ध खुद लडना होगा. कायरता के गीत मत गो,सब पढते हैं .ना सिर्फ रचना.उसके माद्यम से हमें भी.निरीह बताया खुद को तो हजार भेडिये आ जायेंगे.भक्त बन कर,गुरु या सन्यासी या दानदाता बन कर. फिर अपने आपको निरीह या मांस का टुकड़ा बताया तो कभी नही आउंगी तुम्हारे ब्लोग पर मैं,सन्यासिनी! ऐसिच हूं मैं. जब तक आग या कोबरा नही बनोगी,खुद को कैसे बचाओगी,पगली बेटी!
pribhasha bdl jati jb bhi tum bdle ho duniya hi bdl jati beprda ktu schchai marmik v nirdyee dr.vedvyathit@gmail.com http://sahityasrjakved.blogspot.com
17 comments:
Achchhaa likhaa
nirantar likhanaa our any blogs dekhanaa zarooree hai
आप बीती या जग सुनी?
आप बीती? तो क्यों नही कह पाई ?
जग बीती ? तो भी कहूंगी क्यों नही कह पाई?एक सन्यासिनी को किस का भय?कैसा भय? स्वयम को जीतना होगा,इसके लिए मांस का टुकड़ा समझे कोई उसे अहसास दिला दो कि सन्यासिनी हो किन्तु स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद की परम्परा और विचारधारा वाली.
मांस का टुकड़ा नही आग हो निगलने की छोड़ो हाथ नही लगा पायेगा.अपने अपने कुरुक्षेत्र हैं यहाँ और अपने युद्ध. स्वयं लड़ने होंगे कोई कृष्ण भी नही होगा साथ इस बार.अपना युद्ध खुद लडना होगा.
कायरता के गीत मत गो,सब पढते हैं .ना सिर्फ रचना.उसके माद्यम से हमें भी.निरीह बताया खुद को तो हजार भेडिये आ जायेंगे.भक्त बन कर,गुरु या सन्यासी या दानदाता बन कर.
फिर अपने आपको निरीह या मांस का टुकड़ा बताया तो कभी नही आउंगी तुम्हारे ब्लोग पर मैं,सन्यासिनी!
ऐसिच हूं मैं.
जब तक आग या कोबरा नही बनोगी,खुद को कैसे बचाओगी,पगली बेटी!
सुंदर रचना!
कम शब्दों में आपने गहरी बात कह दी रितु जी। सम्वेदनशील रचना। वाह।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
साध्वी जी,
आपकी भावाभिव्यक्ति प्रभावशाली है..
आभार..
नया कहना नहीं है ..नया करके दिखाना है ...बोलती हुई भावनाएं लिखी हैं ..
bahut hi acchaa likha hi aapko kiska dar sadhviji
bahut hi acchaa likha hi aapko kiska dar sadhviji
डेंजरस सोच है
मैं तो डर गया था :)
बाप रे कितनी अदभुत तस्वीर खींच दी कविता में
वाह वाह
ओह........
आपकी अभिव्यक्ति क्षमता ने अतिशय प्रभावित किया...
शायद कंठ में एक भी बूंद उतारने से पहले ही कह देना चाहिए था। कोशिश कीजिए अवश्य कह पाइएगा।
pribhasha bdl jati
jb bhi tum bdle ho
duniya hi bdl jati
beprda ktu schchai marmik v nirdyee
dr.vedvyathit@gmail.com
http://sahityasrjakved.blogspot.com
बहुत सुन्दर
कुछ भी नया नही पर बिलकुल नया है
बढिया रचना । और चित्र भी ।
अक अजीब सी टीस नजर आ रही है रचना में।
किसी क्रिया के प्रति प्रतिक्रिया होने पर ही
नया रास्ता निकलता है।
BAHUT SUNDER ABHIVYAAKTI...BADHAAYEE SWEEKAR KAREIN ...
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