Monday, September 6, 2010

कुछ भी नया नहीं





एक बोतल शराब

एक कंठ

जिससे नीचे उतरता

मीठा गरल

सामने मैं

एक मांस का टुकड़ा

भक्षने को आतुर आँखें

खुद को

आँख बंद कर

छुपाती

मैं!!

-कुछ भी नया नहीं कह पाई!

17 comments:

बाल भवन जबलपुर said...

Achchhaa likhaa
nirantar likhanaa our any blogs dekhanaa zarooree hai

Anonymous said...

आप बीती या जग सुनी?
आप बीती? तो क्यों नही कह पाई ?
जग बीती ? तो भी कहूंगी क्यों नही कह पाई?एक सन्यासिनी को किस का भय?कैसा भय? स्वयम को जीतना होगा,इसके लिए मांस का टुकड़ा समझे कोई उसे अहसास दिला दो कि सन्यासिनी हो किन्तु स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद की परम्परा और विचारधारा वाली.
मांस का टुकड़ा नही आग हो निगलने की छोड़ो हाथ नही लगा पायेगा.अपने अपने कुरुक्षेत्र हैं यहाँ और अपने युद्ध. स्वयं लड़ने होंगे कोई कृष्ण भी नही होगा साथ इस बार.अपना युद्ध खुद लडना होगा.
कायरता के गीत मत गो,सब पढते हैं .ना सिर्फ रचना.उसके माद्यम से हमें भी.निरीह बताया खुद को तो हजार भेडिये आ जायेंगे.भक्त बन कर,गुरु या सन्यासी या दानदाता बन कर.
फिर अपने आपको निरीह या मांस का टुकड़ा बताया तो कभी नही आउंगी तुम्हारे ब्लोग पर मैं,सन्यासिनी!
ऐसिच हूं मैं.
जब तक आग या कोबरा नही बनोगी,खुद को कैसे बचाओगी,पगली बेटी!

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर रचना!

श्यामल सुमन said...

कम शब्दों में आपने गहरी बात कह दी रितु जी। सम्वेदनशील रचना। वाह।

सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com

स्वप्न मञ्जूषा said...

साध्वी जी,
आपकी भावाभिव्यक्ति प्रभावशाली है..
आभार..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नया कहना नहीं है ..नया करके दिखाना है ...बोलती हुई भावनाएं लिखी हैं ..

संजय तिवारी said...

bahut hi acchaa likha hi aapko kiska dar sadhviji

संजय तिवारी said...

bahut hi acchaa likha hi aapko kiska dar sadhviji

एक बेहद साधारण पाठक said...

डेंजरस सोच है
मैं तो डर गया था :)

बाल भवन जबलपुर said...

बाप रे कितनी अदभुत तस्वीर खींच दी कविता में
वाह वाह

रंजना said...

ओह........

आपकी अभिव्यक्ति क्षमता ने अतिशय प्रभावित किया...

मृत्युंजय त्रिपाठी said...

शायद कंठ में एक भी बूंद उतारने से पहले ही कह देना चाहिए था। कोशिश कीजिए अवश्‍य कह पाइएगा।

vedvyathit said...

pribhasha bdl jati
jb bhi tum bdle ho
duniya hi bdl jati
beprda ktu schchai marmik v nirdyee
dr.vedvyathit@gmail.com
http://sahityasrjakved.blogspot.com

M VERMA said...

बहुत सुन्दर
कुछ भी नया नही पर बिलकुल नया है

शरद कोकास said...

बढिया रचना । और चित्र भी ।

परमजीत सिहँ बाली said...

अक अजीब सी टीस नजर आ रही है रचना में।

किसी क्रिया के प्रति प्रतिक्रिया होने पर ही
नया रास्ता निकलता है।

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

BAHUT SUNDER ABHIVYAAKTI...BADHAAYEE SWEEKAR KAREIN ...