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Friday, May 2, 2008
डर
सुबह सुबह
आँजुरी में अपने
चमकती धूप लिए
अँधेरी रात की गली के
मुहाने पर आकर
ठिठकी खड़ी है-
शायद...
मेरी आँखों की नमीं से
वो भी डरी है.
4 comments:
samagam rangmandal
said...
सुंदर अभिव्यक्ति है...
May 18, 2008 at 12:47 AM
samagam rangmandal
said...
सुंदर अभिव्यक्ति है...
May 18, 2008 at 12:49 AM
Dr. Zakir Ali Rajnish
said...
प्रतीक और बिम्ब का सुंदर प्रयोग है। बधाई स्वीकारें।
May 19, 2008 at 12:44 AM
Suvichar
said...
बहुत सुंदर
May 19, 2008 at 6:15 AM
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साधवी
मैं की तलाश में अब तक भटक रही हूँ.
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सुंदर अभिव्यक्ति है...
सुंदर अभिव्यक्ति है...
प्रतीक और बिम्ब का सुंदर प्रयोग है। बधाई स्वीकारें।
बहुत सुंदर
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