अभिव्यक्त करुँ
या मौन धरुँ
कब कोई
यहाँ पर सुनता है
मेरे सब
सुख दुख मेरे हैं
कैसे माने
हम तेरे हैं
पर पीड़ा से
विचलित होकर
कब कोई
यहाँ सर धुनता है
कब कौन
किसी का होता है
क्यूँ जहर
यहाँ पर बोता है.
अपनी दुनिया में
खुश हो लेंगे
बस ख्वाब
यहाँ वो बुनता है
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3 comments:
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
अपने दर्द को कहा नहीं,
सिर्फ़ सहा जाता है
परंतु वह सारी दुनिया का दर्द हो
तो कहना ज़रूरी है.
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फ़ैसला आप कीजिए....कविता अच्छी लगी.
शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन
अभिव्यक्त करुँ या मौन धरुँ....कविता अच्छी लगी,सुन्दर है,शुभकामनाएँ !
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