कुंठा से मन कडुवाया..
शब्दों ने आकार लिया..
ओह!
शायद कविता रच गई..
अब कुछ गोड़ पसार लें..
तम्बाखू खंगार लें..
मोहल्ले के नुक्कड़ वाली
पनवाड़ी की दुकान पर
शाम को बतियायेंगे
इस कविता को सुनायेंगे...
मोहल्ले के तो हम मुन्नु हैं
कौन बूझता है
हमारा कवि वाला नाम?
खुद विवाद उठायेंगे कविता पर..
खूब गाली बकेंगे
दूसरे साथ देंगे..
विवाद और कोहराम होगा..
कवि बदनाम होगा..
कवि और कविता का नाम होगा..
जल्द ही हाथों मे इनाम होगा!!
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3 comments:
इस कविता के माध्यम से बहुत प्रभावी कटाक्ष मारा है आपने !
बहुत सही लिखा है।बढिया रचना है।बधाई।
स्वतंत्रता दिवस की अनेक शुभकामनाएँ.....
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