Friday, September 3, 2010

नींव




आँख

चौंधिया जाती है

जब

इन इमारतों की

जगमागहट से

तब

ऐसे में अक्सर

झांक लिया करती हूँ

इनकी नींव में..

कितना अँधेरा है वहाँ!!

14 comments:

Sunil Kumar said...

सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

विवेक सिंह said...

बहुत बढ़िया ।

स्वप्न मञ्जूषा said...

सुन्दर अभिव्यक्ति..!

Udan Tashtari said...

गहरी बात.

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर बात!

Arvind Mishra said...

नीव का वही अधियारा गगनचुम्बी भवनों के प्रकाश स्तम्भ को संभाले हुए है :)

Anonymous said...

ओह! तभी किसी शायर ने लिखा है- तुम्हे जिंदगी के उजाले मुबारक अँधेरे मुझे आज रास आ गये हैं'
हाँ नीव में गहन अंधकार होता है,तभी तो उजाले अपनी पूर्ण क्षमता के साथ संसार को जगमगाते हैं,जीवन गतिशील हो पाता है.अन्धकार ना होता तो आपके 'उजाले' कैसे अपने आप को 'उजागर' करते?
चंद शब्द ...गहरी बात पर...नई नही
'वाह खूब' कैसे कह दूँ?

naresh singh said...

अँधेरे के बिना उजाले की कोई कीमत नहीं है |

Anil Pusadkar said...

कडुवा सच्।

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। हमेशा आपकी मेल देख कर समझती कि शायद कोई सच मे साध्वी है मुझे साधू सन्तों से बहुत भय लगता है मगर आज देख ही लिया। बहुत खूब। शुभकामनायें

ताऊ रामपुरिया said...

यथार्थ बात कही आपने.

रामराम.

रंजना said...

वाह.....क्या बात कह दी आपने....
बहुत ही सही...

संजय तिवारी said...

बहुत सुन्दर अभिकव्यक्ति

M VERMA said...

वाह!
वाकई नींव अन्धेरे में ही होता है