Tuesday, October 20, 2009

घी का दीपक..


इस दीपावली

एक घी का दीपक

छत की

उस मुंडेर पर भी रखा..

जहाँ आकर

तुम्हारी यादें

मुझसे मिला करती थी..

मेरे जीवन को

रोशन किया करती थी..

शायद दीपक की रोशनी

उन यादों को

भटकी राह दिखाये...

एक उम्मीद बाकी है अभी!!

10 comments:

Udan Tashtari said...

क्या खूब रोशन किया है यह दीपक..यादों को भटकी राह दिखाने. वाह!!

दिवाली मुबारक!!

विनोद कुमार पांडेय said...

सुंदर अभिव्यक्ति....सुंदर भाव...धन्यवाद

शरद कोकास said...

दीपक की रोशनी और यादों का सम्बन्ध तो सदा से है ।

श्यामल सुमन said...

शेष रहे आशा की किरणें सपनों का आकाश।
घी के दीपक में आकर्षण आता रहे प्रकाश।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

विवेक रस्तोगी said...

एक उम्मीद बाकी है अभी,

हमें भी, आपको दीवाली की शुभकामनाएँ

निर्मला कपिला said...

एक उम्मीद बाकी है अभी!!
एक ही क्यों सभी उमीदें जिन्दा रखिये शुभकामनायें

ओम आर्य said...

उम्मीद का होना ही कई लाख् दीपको को एक साथ जलाती हुई कविता.......अतिसुन्दर!

RAJNISH PARIHAR said...

bahut hi sundar..aur pavitra shabdon ki abhivyakti..

पंकज said...

सुंदर कविता, उतनी ही महकती हुयी जितना घी का दीपक महकता है.

आशीष "अंशुमाली" said...

बहुत दिन बाद एक सुंदर कविता पढ़ने को मिली.. बधाई स्‍वीकारें।
छत की
उस मुंडेर पर भी रखा..
.......
उन यादों को
भटकी राह दिखाये...
.......
एक उम्मीद बाकी है अभी!!

एक घी का दीपक सदैव सम्‍भालकर रखियेगा।