Saturday, August 14, 2010

सन ४७ से




धुनी कपास की बनी

पोनी को चरखे पर कात

बनाई थी खादी की

एक सफेद चादर

कुछ चूहे मिलकर

कुतरते रहे रात दिन

उसे सन ४७ से

और आज

छोटी छोटी कतरनों का ढेर

लगने लगा है जैसे

कच्ची कपास

उसे धुनना होगा

एक नई चादर

फिर से बुनना होगा.


*

-स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें-

21 comments:

कडुवासच said...

... सुन्दर व प्रसंशनीय रचना !!!

M VERMA said...

अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति
चादर जो बुनी गयी है चूहे कुतरेंगे ही गर उनकी संभाल नहीं होगी तो ..
पर सम्भालने का जिम्मा भी सौंपा गया है उन्हीं चूहों पर.
बेहतरीन

विनोद कुमार पांडेय said...

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

विवेक रस्तोगी said...

आजादी के दिन की बधाईयाँ


१५ अगस्त के संदर्भ में - वन्दे मातरम और स्वतंत्रता दिवस के सही मायने क्या हम नई पीढ़ी तक पहुँचा पा रहे हैं ? [On the occasion of 15th August….]

PD said...

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ ..

शैलेश भारतवासी said...

आपकी बात कुछ हद तक ठीक है

दिलीप कवठेकर said...

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

सिर्फ़ चूहे ही नहीं, दीमक भी...

nilesh mathur said...

आपको भी स्वाधीनता दिवस की बहुत शुभकामना, जय हिंद!

परमजीत सिहँ बाली said...

अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति

स्वतंत्रता दिवस की अनेक शुभकामनाएँ.....

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर है। बहुत सुन्दर!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

जब-जब चूहे काटें, तब-तब बुननी होगी.
...उम्दा भाव,अच्छी कविता.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सटीक अभिव्यक्ति....

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

Sanjeet Tripathi said...

स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनायें

राजेश उत्‍साही said...

हम चूहे बनना जिस दिन छोड़ देंगे उस दिन हमें असली आजादी मिलेगी।

Udan Tashtari said...

अच्छा लिखा है.

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

सादर

समीर लाल

राकेश खंडेलवाल said...

कम शब्दों में बड़ी और गहरी बात कही है आपने.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत सही कहा आपने.. उम्दा प्रस्तुति !!

संजय तिवारी said...

अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

संजय तिवारी said...

अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

Anonymous said...

आपने बहुत अच्‍छी बात कही है, लेकिन इन चादरों को अब पुरानी शक्‍ल में लाना वर्तमान परिवेश में संभव नहीं दिखता।

स्वप्न मञ्जूषा said...

अत्यंत सुन्दर अभिव्यक्ति..!